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दिसम्बर और जनवरी सा रिश्ता हमारा

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 कुछ कुछ तो.. दिसम्बर और जनवरी सा ही है रिश्ता हमारा, एक दुसरे के जितने समीप है मन हमारा, उतने ही हैं दूर हम, निकट आकर भी ज्यों हमारा मिलना पूर्णतया असंभव है, विछोह के धागे के दोनो सीरों पर बंधे हैं ज्यो हम और तुम, एक दुसरे से मिलने की आस में, हर मौसम को लांघ कर आगे बढते हुए भी, बिछड़ना ही है नियती ज्यो अपना..... हसरतें हजारो हृदय में लिए बढते हैं कि.. मिल सकें हम तुमसे, पर विवशता तो देखो भाग्य की, फिर भी मिल नही सकते.. हम दिसम्बर से बढते हैं तो, नियती जनवरी सा दामन बचा कर अपना, आगे हमसे बढ़ जाती है...!!

बदलते मिजाज तुम्हारे

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 बदलते मौसम से बदलते तुम तुम्हारे बदलते शख्सियत से डर सा अब कुछ होने लगा है कितना तुम्हें जानती हूं मैं खुद से ही दिल अब मेरा सवाल ये करने लगा है.. कुछ इस कदर मैं टूट गई हूं शायद कुछ कुछ तेरे इश्क से ही  रूठ सी गई हूं मैं.. तुम हवा के झोंके से जब  रूह को छूकर गुजरते हो  तुम्हें यकीन नहीं इस बात का  जर्रा-जर्रा दिल का मचल जाता है टूट कर मैं कहीं बिखर ना जाऊं ऐसे दिल्लगी ना तू मेरे साथ कर तेरे इश्क के सुरूर में खुद को यूं बर्बाद किए बैठी हूं तुझे इल्म ही नहीं मेरी इस बेबसी का दो घड़ी का तेरा ओझल होना  मेरी नजरों से  जाने क्यों पल वो  कयामत से कम नहीं लगती..!!

मासुमियत उनकी

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 शिद्दत की नजाकत है उनके अंदाज-ए-मुहब्बत में बडे़ हौले से कत्ल-ए-सुकून कर जाते हैं और नफासत से मासुम भी बने रह जाते हैं..!!

खामोशी तेरी...

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 झील सी गहरी खामोशी फैली है तेरे मेरे दरमियां  कुछ कंकड़ अल्फाजों के तो मार इस खामोश लहर में  एक साज बन के गुजर तू मेरे दिल के नगर से समेट लूँ मैं तेरे आवाज को अपने तराने में बेचैनी मेरी ढूँढ रही तूझे अपनी खामोशी में इक अरसे से तलाश रही तेरी गुफ्तगू के सिलसिले

ये इश्क ही तो है...

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 काले अंधियारे रात में... चाँद के चमकीले उजियारे में.. सुहानी सर्दीली मौसम में.. एकटक खडे़ आसमाँ को तकना.. कैसे कहूँ,,, ये इश्क नही...! व्याकुल मन ....बेचैन पल... तुम्हारा बेसबब ख्याल... चाँद में प्रतिबिम्बीत,, तुम्हारा अक्श.. बरबस तुम्हारी ओर,, खिंचता पागल मन... कैसे कहूँ ,,,,ये इश्क नही ..!! कुछ रेशमी सी यादें तुम्हारी,, पलकों को भिगो सी जाती है..  पिघलती चाँदनी में,, विचरण करते अधजगे से कुछ... ख्वाब मेरे.... कैसे कहूँ....ये इश्क नही है...!!!

कैसे कहूँ...

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 मिलने की उम्मीद तो नही है तुझसे...!    पर मैं ये कैसे कह दूं कि, मुझे इंतज़ार नहीं है तेरा...!!

क्यो फरियाद करना..

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 फिर क्या मिन्नत, क्या दुआ और क्या फरियाद करना खता गर है तो खता सही क्या खता को यूँ याद करना गुजरी बातें, गुजरे लम्हे पल जो बिछड़ गए क्या उन पलों के दर्द में  खुद को बर्बाद करना रह गई जो मोड़ कहीं पीछे क्या उस रास्ते पर फिर से मुड़ना अजनबी जो जिन्दगी में आए क्या उनके छोड़ जाने गम करना  जो साये हुए ही नही कभी अपने क्या उन सायों के पीछे भागना हाथ जो छुडा़ गए बीच सफर में क्या उनके लिए पलके भिगोना..!!