दिसम्बर और जनवरी सा रिश्ता हमारा
कुछ कुछ तो.. दिसम्बर और जनवरी सा ही है रिश्ता हमारा, एक दुसरे के जितने समीप है मन हमारा, उतने ही हैं दूर हम, निकट आकर भी ज्यों हमारा मिलना पूर्णतया असंभव है, विछोह के धागे के दोनो सीरों पर बंधे हैं ज्यो हम और तुम, एक दुसरे से मिलने की आस में, हर मौसम को लांघ कर आगे बढते हुए भी, बिछड़ना ही है नियती ज्यो अपना..... हसरतें हजारो हृदय में लिए बढते हैं कि.. मिल सकें हम तुमसे, पर विवशता तो देखो भाग्य की, फिर भी मिल नही सकते.. हम दिसम्बर से बढते हैं तो, नियती जनवरी सा दामन बचा कर अपना, आगे हमसे बढ़ जाती है...!!