तुम्हारी आँखें...
तुम्हारी आँखें... न जाने कितनी बातें करती हैं मुझसे, यूं लगता है, जैसे मुझको मुझसे ही छुपाए रखी है..! जब भी देखती हूं मैं तुम्हारे आँखों में, बस देखती ही रह जाती हूं, तुम्हारी बोलती सी आँखें, यूँ लगता है जैसे, बहुत सी बातें करती हैं मुझसे..! तुम्हारी चंचल आँखों में, एक पूरी किताब नजर आती है मुझे, लिखा हो तुमने जैसे उस किताब में, शब्द-दर-शब्द मेरे ही फसाने, मैं औब कुछ भूल कर ज्यों, पढती ही चली जाती हूँ, तुम्हारी आँखों में अपने तराने..!! तुम्हारी आँखों में मुझे, मेरी ही तस्वीर नजर आती है, जैसे तुमने बनाए हो तस्वीर मेरी, मेरे ही पसन्दीदा सारे रंगों से, और मैं खो सी जाती हूं मगन होकर, निहारने में अपनी तस्वीर, तुम्हारी आँखों में..!!! तुम्हारी आँखें... न जाने कितनी बातें करती हैं मुझसे, यूं लगता है, जैसे मुझको मुझसे ही छुपाए रखी है..!!!