प्रेम में क्यो हो..

 प्रेम में क्यो हो..

सारी मेरी ही जिम्मेदारी

थोडी़ सी तुम भी तो निभाओ साझेदारी


तुम क्यो चाहते हो कि मैं ही तुम्हे समझूँ हमेशा

कभी-कभी तुम भी तो मुझे समझ लिया करो ना..


तुम क्यो चाहते हो कि मैं ही तुम्हारे लिए सोचूँ हमेशा

कभी-कभी तुम भी तो मेरे लिए सोच लिया करो ना..


तुम क्यो चाहते हो कि मैं ही हर पल यादों में तुम्हारे पागल रहूँ हमेशा

कभी-कभी तुम भी तो यादों में मेरी पागल हो जाया करो ना..


तुम क्यो चाहते हो हमेशा तुम ही रहो नाराज और मैं ही तुम्हे मनाऊँ

कभी-कभी होने दो मुझे भी नाराज और मनाओ तुम भी मुझे..


तुम क्यो चाहते हो तुम्हारे इनतजार में मैं ही रहूं पलके बिछाये हमेशा

कभी-कभी तुम भी तो मेरे इन्तजार में पलके अपनी अश्रुपुरित करो..


तुम क्यो चाहते सारी इच्छाये बस तुम्हारी ही पुरी करूँ मैं

कभी-कभी मेरी इच्छओं को भी तो दो सम्मान तुम..


तुम क्यो चाहते हो हमेशा गुस्सा तुम ही करो मुझपर

कभी-कभी ज्यादा न सही थोडे़ ही पर गुस्सा का अधिकार मुझे भी तो दो...


तुम क्यो चाहते हो कि तुम बार बार रुठो और मैं तुम्हे मनाऊँ

कभी-कभी मैं रुठूँ और तुम तो मनाओ मुझे...


तुम क्यो चाहते हो प्रेम की संपूर्णता की ओर मैं ही अग्रसर रहूँ

तुम भी प्रेम की परिपूर्णता की ओर दो कदम बढाओ..


तुम क्यो चाहते हो प्रेम में सारी कसमों सारे वादों का पैमाना मैं ही बनूं

तुम भी कुछ कसमों कुछ वादों का भार उठाओ..



यार मैं तो बस इतना चाहती हूँ कि जैसा प्यार मुझे है तुमसे 

तुम भी तो वही प्यार करो मुझसे..

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