सफर सुहाना हो जाता
सफर सुहाना हो जाता जिन्दगी का
गर हमसफर बन कर तुम मिले होते
राह के काँटे-कंकड़ पुष्प से प्रतीत होते मुझे
गर मिला मुझे हाथों में तुम्हारा हाथ होता..
गुनगुनाती हुई मैं कदम आगे बढाती जाती
गर मेरे हमकदम बन तुम मेरे साथ होते
आज जो चुभन सी अक्सर महसूस होती है मुझे,
शायद वो तो नही होती दिल में मेरे
बोझील नजरे, बुझा सा मन, खोखली हंसी का आवरण जो होंठों पर है मेरे
शायद वो नही रहता, गर तुम मुझे मिल गये होते..
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