बसन्त बहार

ऋतुराज बसन्त ने आगमन किया है,

मदमाती हवाएँ अठखेलियाँ कर लोट रही,

राह में ज्यो ऋतुराज के स्वागत को,

वातावरण में इत्र सा फैल गया चहूँ ओर,

कुछ सर्द सी हवाएं कर रही मन को विभोर,

रंग विरंगे मधुमासी तितलियाँ फूलों को,

चुमकर  कर रही  हैं उनका अभिनन्दन

बसन्ती भंवरे कभी इधर तो कभी उधर गुँजने लगे

डाली डाली और फूल फूल,

प्रेम धून की राग अलाप हर दिशा में मंडराने लगे

कहीं पीले सरसो तो कहीं लाल कुसूम

कहीं गुलाबी फिजाएं तो कहीं पुष्पों की रंगीन शमा

हर तरफ इन्द्रधनुषी बयार चलने लगी हैं,

खुशबू बिखेरती सुबह और शाम होने लगी है

सूखे पडे़ पेडों में ज्यो नवजीवन का संचार सा हुआ,

हरियाली ही हरियाली आँखों को सुहाने लगे हैं,

कलियाँ खिलने लगी, कोंपलों से पौधे भरने लगी हैं

बाग- बगीचे खुशबू में नहा कर महकने लगी है,

चहूँ ओर बस बसन्त बहार है..!!




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