तुम बिन कौन मेरा प्रभू
तुम संग प्रभू मन का मेल मैं किए बैठी हूं,
तुम बिन मेरा दुसरा है और कौन.
तुमसे ही सारी बाते होती है मेरे ह्दय की,
यूं तो अधर मेरे रहते, हरसू ही मौन.
तुम बिन कौन समझे, मेरे हृदय की पीड़.
बस तुम ही जानो, क्यो है मन मेरा अधीर.
तुमसा कोई और सखा न मेरा इस जग में है दूजा,
प्रभू तुम ही मेरा प्रेम, आस और तुम ही मेरी पूजा.
तुम बिन जाऊँ कहाँ मैं कि मेरे चारों ओर घोर अंधेरा है,
कोई नजर नही आता और दूर तक, जो कठिन परिस्थिती में भी पकडे़ हाथ मेरा है.
स्वरचित
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