शिव के प्रेम में सती

सच्ची प्रेम में कशिश ही कुछ ऐसी है कि,

महलों की रानी औघड़ बाबा शिव की प्रेयसी हो गई,

छोड़ कर राजसी ठाठ, सुख के पल सारे,

कैलाश पर शिव संग रहने को राजी हो गई,

फूलों सी नर्म सेज न भायी सती को,

खटवांगी शिव के लिए सारे सुख साधन त्याग आई,

वृषभ पर सवार रहने वाले शिव को पाने के खातिर,

कठोर तप तक करने को तैयार हो गई..!

मलमल के वस्त्र न भाये सती को,

बाघम्बर महादेव को मन में बसाने लगी,

शिव के साधना अराधना में कोई कमी न छोडी़ सती ने

प्रतीक्षा की हर दरिया को पार करने को तैयार हो गई..!





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