प्रेम और प्रतीक्षा

 प्रेम है तो प्रतीक्षा भी है,

प्रतीक्षा में ही तो प्रेम निहित है,

प्रेम कभी पूर्णरुपेण अप्रतीक्षीत होता ही नही..

प्रेम में देवी - देवताओं ने भी प्रतीक्षा किया है..

प्रियतम के वियोग में,

उनकी प्रतीक्षा ही प्रेम की सत्यता की मापदंड है.

प्रतीक्षा की पीडा़ की अग्नि में तप कर ही प्रेम कुन्दन बना है,

प्रेम की विह्वलता हो या प्रतीक्षा की विह्वलता

प्रेम में संकल्पित प्राणी कभी पराजित नही होते..

सही मायने में प्रेम और प्रतीक्षा एक दुसरे के पूरक हैं

एक दुसरे के बिना कोई अस्तित्व नही है इनका,

प्रतीक्षा के बिना प्रेम अधूरा है तो

प्रेम के बिना प्रतीक्षा अधूरी है,

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