प्रेम का रंग


 

प्रेम कुछ ऐसा रंग दिखा रहा है अपना मुझपर,

मुझे लग रहा है जैसे मैं 'तुम' सी हो चली हूँ और तुम. 'मुझ' से..

इस प्रेम परिधि में 'मैं' और 'तुम' का जैसे कोई भान ही न रहा..

तुमने मुझको और मैंने तुम्हे ज्यो खुद में आत्मसात सा कर लिया है,

एक दुसरे का मन-दर्पण बन एक दुसरे में स्वंय को देखना अब भाने सा लगा है...


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