तुम्हारी याद और मैं
कभी कभी यूं लगता है जैसे तुमने मुझे याद किया है,
और फिर अनायास ही मुझे तुम्हारी याद आ जाती है,
न जाने क्युं मन बेचैन, व्यग्र सा प्रतित होने लगता है,
यूं लगता है जैसे, बेहद किमती सा कुछ गुम सा गया है,
हवा की सरसराहट में लगता है जैसे तुमने मेरा नाम लिया है,
और फिर मन में आता है कि जिस हाल में हूं उसी हाल में,
एक दौड़ लगा दूं तुम्हारी तरफ और तुम तक पहुंच जाऊं,
तुमसे तुम्हारा हाल पुछूं, तुम्हे अपने हाल बताऊं,
पर फिर मन मसोस कर मैं रह जाती हूं, ये सोच कर कि,
अब शायद ऐसे हालात नही हम दोनों के बीच,
अब हम एक दुसरे से दूर रहकर, एक दुसरे को भूल कर ही,
यथार्थ की धरा पर रह सकते हैं, एक दुसरे को मन में बसाए..

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