मेरी चाहत


 चांदनी रात की मीठी मीठी रोशनी में,

जब चाँद अपनी चंचल चाँदनी बिखेर रही हो

सर्द हवा जब हल्के-हल्के शरमाई हुई सी बह रही हो,

हवा में खुशबु सी फैली हो, 

घंटों तलक मैं बैठना चाहती हूं तुम्हारे साथ,

तुम्हारे कंधे से सिर टिकाए बैठे रहना चाहती हूं,

पवित्र गंगा के घाट पर,

पानी से अठखेलियाँ करते अपने पैरों को देखते हुए,

पुरसुकून के कुछ पल गुजारना चाहती हूं,

अपनी सारी उलझने और तकलिफों से निजात पाना चाहती हूं,

दिन भर की थकान को अपनी मैं मुंह चिढाना चाहती हूं,

और चाहती हूं मैं कि उस पल तुम भी भूल जाओ,

अपनी सारी परेशानियाँ, जीवन की सारी उतार-चढा़व,

बहते हुए गंगा की पानी को बस देखते रहो,

तुम मेरे साथ बैठकर...!!

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

दिसम्बर और जनवरी सा रिश्ता हमारा

क्यो फरियाद करना..

ये इश्क ही तो है...