मेरा सर्वस्व तुमसे ही है
प्रेम, प्यार, स्नेह, प्रीति, अनुराग....
सभी तो है मेरा तुमसे,
तुमसे ही मेरे हृदय में स्पन्दन है,
मेरी समस्त मोह-माया और अनुरक्ति भी तुमसे ही है,
तुम्हारा प्रेम मुझमें अंतहिन सरित सा समाया है,
निमिष भर का विरह तुम्हारा,
मुझे अन्तर तक उद्वेलित, अधीर कर जाता है,
प्रेम की सम्पूर्ण विभक्ति मेरी तुमसे ही है,
मेरे मन का सुकून आराम सब तुमसे ही है,

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