इक किताब लिखुं तुम पर


  जी करता है, एक किताब लिखूँ,

पृष्ठ दर पृष्ठ बस तुझे ही लिखूँ,

एक ऐसी किताब जहाँ...

प्रथम पृष्ठ से अन्तिम पृष्ठ तक बस तेरी ही बातें हो...

तुझ संग बिताए हर एक लम्हे का, पूर्णतया हिसाब हो....

प्रेम हो, प्रेम का सम्पूर्ण रंग हो,

हम दोनों के मध्य हुए ताने, उलाहने का भी व्याख्यान हो,

वादे और कसमों का भी हो लेखा-जोखा,

तकरार का भी हो स्पष्टीकरण,

तुझ पर और तेरी...

ना जाने कितनी बातें है मेरे अन्तर्मन मे संविलीन,

उन समस्त बातों को मैं शब्दों में पिरोकर...

चाहती हूं कि तुम पर एक किताब लिखूँ...

चन्द शब्दों में भला,

लिख कहाँ पाती हूँ मैं तुम्हे...??


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