आसान नही पुरुष होना पुरुष का



 आदमी का पुरुष होना स्वंय में ही बहुत बडी़ उपलब्धी है,

पुरुष होने के लिए हृदय को बहुत ही मजबुती से कठोर बनाना पड़ता है,

अपने जज्बातों को बडी़ मुश्किल से हृदय में सहेज कर सम्भालना पड़ता है,

अथाह, असिम उम्मीदों के जीते जागते तस्वीर को साकार करना पड़ता है,

          जुबान से दर्द को उजागर कर नही सकते

          खामोशी ही जुबान बन जाती है पुरुषों की,

          आँखों के अश्रु किसी को दिखा नही सकते

          समाज में शर्मसार होने का भय है हृदय में,

         अथाह दर्द और पीड़ उर में अपने छुपाए,

         प्रियजनों के समक्ष मौन मुस्कुराहट लिए रहते हैं,

     माथे पर पडी़ सिलवटों को ये ला सकते नही घर के भीतर

     कितनी भी हो परेशानियाँ, सहज हर पल ही है बने रहना

     घर परिवार की खुशियों में ही समाहित है पुरा जीवन

    काम छोड़कर कुछ दिन घर पर बैठना बेहद शर्मनाक है 

    खुशियों से ज्यादा जिम्मेदारियाँ पूरी करने की भुख है,

            संवेदनशील और मर्मस्पर्शी होते हैं पुरुष भी

            हृदय पाषाण नही, कोमल होता है इनका भी

            प्रेम, ममता और दुलार की चाह होती है इन्हे भी

            कई बार अपना अहं त्याग के भी मुस्कुरा के रहते हैं

मुश्किल बहुत है धरती पर पुरुष जीवन.....

आसान नही है एक आदमी का पुरुष होना......!!


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

दिसम्बर और जनवरी सा रिश्ता हमारा

क्यो फरियाद करना..

ये इश्क ही तो है...