तुम्हारी आँखों में झाँका है जबसे
अक्श मेरा ही अब मुझे भाने लगा है..
जब से निहारा है मैंने स्वंय को उसके आँखों में..
काजल, बिन्दी, रोली, कुमकुम...कभी न भाये मुझे,
पर अब न जाने क्युं, इक मुहब्बत सी इनसे हो गई है,
न जाने क्या था उसके आँखों में, जब झांका मैंने,
सजने, संवरने को दिल चाहने लगा है,
आईना में भी अक्श मेरा सुहाया नही इतना,
जितना उसकी आँखों ने सराहा है मुझे..!!

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