कुछ गुंजायश है बाकि अभी
शायद अब भी कुछ गुंजाइश तो बाकी है,
तेरे मेरे दरमिया....
शायद...
कुछ अहसास, तुझसे हुई पहली मुलाकात की..
कुछ यादें, तुझसे हुई पहली बात की..
तेरे बातों में छुपी अपनेपन की महक की,
शायद कुछ गुंजाइश तो अब भी बाकी है...
तेरे ख्वाबों की, तेरे ख्यालों की,
कुछ अनसुलझे से सवालों की..
तुझसे गुफ्तगु कर मिले खुशियों की..
तेरे ऐतवार की हद की...
कुछ अधूरे किस्सों की..
तो कुछ अनकहे जज्बातों की..
शायद कुछ गुंजाइश तो अब भी बाकी है...
जो मैं भूलना चाह कर भी,
तुझे भूल नही पा रही हूँ..!!

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