हम फिर मिलेंगे

 सुनो..

क्या हुआ जो मिल न पाएँ हम इस जनम में,

सृष्टि को शायद भाया न हो मिलना हमारा,

पर दिल मेरा नाउम्मीद अब भी हुआ नही है,

ऐतवार कुछ तुम भी रखना...

इस जनम नही तो ना सही,

बेशक अगले जनम, किसी और जनम,

मिलुँगी मैं अवश्य तुमसे,

हो सकता है, मिल सकूं न तुमसे मैं "मैं" बनकर..

पर मिलना हमारा तय है,

हो सकता है,

मैं मिलूं तुमसे, बहती सरिता की चंचल धारा बन,

सरसराती ठण्ढी संदिली पवन बन कर,

किसी मन्दिर में पडे़ कुसुम सुमन बन कर,

या फिर तुम्हारे घर के आँगन के तुलसी बन कर..

पर मैं तुमसे मिलुंगी अवश्य....

रखना तुम ऐतवार इतना मुझपर, मेरे प्रेम पर...!!


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