तारों को समेट लूँ हथेली में अपनी


 एक अभिलाषा मेरे हृदय में अक्सर जागृत होती है कि मैं आसमां से टूटते तारों को हथेलियों में भर लूँ अपने,

इनके चमकते रोशनी को, मुट्ठी में अपने कैद कर लूँ,

हमेंशा के लिए, सदा सर्वदा के लिए,

और जो मन में हो कामना मेरी,

शायद पूर्ण मैं करवा सकूँ फिर इनसे,

और कामना तो मेरी रही है हमेशा से यही कि,

तुमसे प्रेम मेरा जो है आधा अधूरा सा इस जन्म में,

वो हो जाए पूर्ण जाकर किसी और जन्म में...!!



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