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दिसंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दिसम्बर और जनवरी सा रिश्ता हमारा

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 कुछ कुछ तो.. दिसम्बर और जनवरी सा ही है रिश्ता हमारा, एक दुसरे के जितने समीप है मन हमारा, उतने ही हैं दूर हम, निकट आकर भी ज्यों हमारा मिलना पूर्णतया असंभव है, विछोह के धागे के दोनो सीरों पर बंधे हैं ज्यो हम और तुम, एक दुसरे से मिलने की आस में, हर मौसम को लांघ कर आगे बढते हुए भी, बिछड़ना ही है नियती ज्यो अपना..... हसरतें हजारो हृदय में लिए बढते हैं कि.. मिल सकें हम तुमसे, पर विवशता तो देखो भाग्य की, फिर भी मिल नही सकते.. हम दिसम्बर से बढते हैं तो, नियती जनवरी सा दामन बचा कर अपना, आगे हमसे बढ़ जाती है...!!

बदलते मिजाज तुम्हारे

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 बदलते मौसम से बदलते तुम तुम्हारे बदलते शख्सियत से डर सा अब कुछ होने लगा है कितना तुम्हें जानती हूं मैं खुद से ही दिल अब मेरा सवाल ये करने लगा है.. कुछ इस कदर मैं टूट गई हूं शायद कुछ कुछ तेरे इश्क से ही  रूठ सी गई हूं मैं.. तुम हवा के झोंके से जब  रूह को छूकर गुजरते हो  तुम्हें यकीन नहीं इस बात का  जर्रा-जर्रा दिल का मचल जाता है टूट कर मैं कहीं बिखर ना जाऊं ऐसे दिल्लगी ना तू मेरे साथ कर तेरे इश्क के सुरूर में खुद को यूं बर्बाद किए बैठी हूं तुझे इल्म ही नहीं मेरी इस बेबसी का दो घड़ी का तेरा ओझल होना  मेरी नजरों से  जाने क्यों पल वो  कयामत से कम नहीं लगती..!!

मासुमियत उनकी

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 शिद्दत की नजाकत है उनके अंदाज-ए-मुहब्बत में बडे़ हौले से कत्ल-ए-सुकून कर जाते हैं और नफासत से मासुम भी बने रह जाते हैं..!!

खामोशी तेरी...

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 झील सी गहरी खामोशी फैली है तेरे मेरे दरमियां  कुछ कंकड़ अल्फाजों के तो मार इस खामोश लहर में  एक साज बन के गुजर तू मेरे दिल के नगर से समेट लूँ मैं तेरे आवाज को अपने तराने में बेचैनी मेरी ढूँढ रही तूझे अपनी खामोशी में इक अरसे से तलाश रही तेरी गुफ्तगू के सिलसिले

ये इश्क ही तो है...

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 काले अंधियारे रात में... चाँद के चमकीले उजियारे में.. सुहानी सर्दीली मौसम में.. एकटक खडे़ आसमाँ को तकना.. कैसे कहूँ,,, ये इश्क नही...! व्याकुल मन ....बेचैन पल... तुम्हारा बेसबब ख्याल... चाँद में प्रतिबिम्बीत,, तुम्हारा अक्श.. बरबस तुम्हारी ओर,, खिंचता पागल मन... कैसे कहूँ ,,,,ये इश्क नही ..!! कुछ रेशमी सी यादें तुम्हारी,, पलकों को भिगो सी जाती है..  पिघलती चाँदनी में,, विचरण करते अधजगे से कुछ... ख्वाब मेरे.... कैसे कहूँ....ये इश्क नही है...!!!

कैसे कहूँ...

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 मिलने की उम्मीद तो नही है तुझसे...!    पर मैं ये कैसे कह दूं कि, मुझे इंतज़ार नहीं है तेरा...!!

क्यो फरियाद करना..

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 फिर क्या मिन्नत, क्या दुआ और क्या फरियाद करना खता गर है तो खता सही क्या खता को यूँ याद करना गुजरी बातें, गुजरे लम्हे पल जो बिछड़ गए क्या उन पलों के दर्द में  खुद को बर्बाद करना रह गई जो मोड़ कहीं पीछे क्या उस रास्ते पर फिर से मुड़ना अजनबी जो जिन्दगी में आए क्या उनके छोड़ जाने गम करना  जो साये हुए ही नही कभी अपने क्या उन सायों के पीछे भागना हाथ जो छुडा़ गए बीच सफर में क्या उनके लिए पलके भिगोना..!!

मैं तुमसे फिर मिलूंगी

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 मैं तुमसे फिर मिलूंगी, तुम रखना यकिन, मैं तुमसे फिर मिलूंगी, तुम करना मेरा इन्तजार, न तुम्हारे शहर में, न मेरे शहर में, न इस पूरे जहान में कहीं, मैं तुमसे वहाँ मिलूंगी, जहाँ सूरज ढलता है, मैदान के उस ढलान पर मिलूंगी, जहाँ तुम्हारे मेरे बीच कोई बन्धन नही होगा, न समाज का, न इस मिथ्या जग का, जहाँ न तुम्हारे मर्यादे का ख्याल होगा न मेरे लिए बने किसी लक्ष्मणरेखा का भान होगा, जहाँ उम्र की सीमा का कोई मतलब नही होगा, जहाँ न सही और गलत का कुछ अवसाद होगा, सुनो, मैं तुमसे वहीं मिलूंगी, वहाँ तुमसे कहूंगी मैं अपने दिल की सारी अनकही बातें, और सुनूंगी तुम्हारे दिल की सारी अनकही अनसुनी जज्बातें मैं तुमसे वहीं मिलूंगी, तुम करना मेरा इन्तजार..!!

आसान कहाँ है...

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 आसान कहाँ होता है, यूँ आसानी से किसी को अपनी सर्वप्रिय चीज दे देना.. और मैं तो तुम्हे एक पल में ही अपनी जिन्दगी दे दी, बिन कुछ सोचे, बिन कुछ समझे, तुमने तो चाहत की थी सिर्फ मेरे दिल की, और मैंने तुम्हे अपनी जिन्दगी ही सौंप दी...!!

तारों को समेट लूँ हथेली में अपनी

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 एक अभिलाषा मेरे हृदय में अक्सर जागृत होती है कि मैं आसमां से टूटते तारों को हथेलियों में भर लूँ अपने, इनके चमकते रोशनी को, मुट्ठी में अपने कैद कर लूँ, हमेंशा के लिए, सदा सर्वदा के लिए, और जो मन में हो कामना मेरी, शायद पूर्ण मैं करवा सकूँ फिर इनसे, और कामना तो मेरी रही है हमेशा से यही कि, तुमसे प्रेम मेरा जो है आधा अधूरा सा इस जन्म में, वो हो जाए पूर्ण जाकर किसी और जन्म में...!!

ऐसा भी हो कभी....

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 ऐसा भी हो कभी कि दिसम्बर की किसी सर्द सुबह में, छज्जे पर खडी़ मखमली धूप में, मैं गीले बाल अपने सुखा रही हूं और अनायास ही गली में मुझे तेरा दिदार हो जाए, तुम्हारी नजरें उठे और मेरी नजरों से चार हो जाए, उफ्फ वह सुबह भी क्या सुबह होगी, तुम्हारी निगाहों से बातें करती निगाहें मेरी, कुछ हया तो कुछ संकोच से सकुचाते लव मेरे, रूबरू होकर तुमसे जो न हो सकती है बातें कभी निगाहों ने उन बातों को भी करने का ज्यो लिया हो जिम्मा, हठी निगाहें बेसब्र मन, कर रही हो जैसे ...  कभी खत्म न होने वाली बातें, काश कभी ऐसा भी हो...!!

काश दिल के पास दिमाग होता

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 काश कि बनाने वाले ने दिल के पास भी एक दिमाग बनाया होता... फिर दिल को शायद इतना दर्द और तकलीफ से न गुजरना पड़ता...!!

तुम्हे खुबसुरत लिखा है..

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 लगता है, अब फूल सारे चमन के, मुझसे नाराज हो जायेंगे, दरकिनार कर इनकी मनमोहक खुशबू को,  इनकी खुबसुरती को, मैंने तुम्हे खुबसुरत लिखा है.... इठलाती नदियाँ, बहते पवन के झोंके, सारे नजारे, सारी खुबसुरत वादियाँ, मुझे मुँह चिढायेंगे, दरकिनार कर इनके रमणिक, वर्णनिय अफशानों को, मैंने तुम्हारी बातें लिखी है.... पन्ने दर पन्ने पर बस तुम्हे लिखा है, तुम्हारी बातें, बातों में खुबसुरती, बस इन पर ही सारे शब्दों का माला पिरोया है...!!

नही बदलेगा मेरा प्रेम

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 मुमकिन है कि ये वक्त बदल जाए, एक दिन ऐसा भी हो कि प्रकृति भी बदलाव का मन बना ले, धरती, गगन बदल जाए, नदियाँ, पहाड़, पर्वत भी बदल जाए, हवा भी बहने से कर दे मना, चाँद, सूरज, तारे भी बदल जाए, तब भी सुनो, जो नही बदलेगा कभी, वो होगा मेरा प्रेम, जो है सिर्फ तुम्हारे लिए, मेरे मन के हर कोने में व्यवस्थित है साधिकार, निरंकुश, और मैं इससे भी कहीं ज्यादा बढकर करना चाहती हूँ, प्रेम तुमसे..... इतना ज्यादा कि... एक दिन प्रेम की परिभाषा ही हम दोनों में सिमट कर रह जाए...!!

उम्र बीत जाती है

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 ज़रा सी बात पे ना छोड़ना              किसी का दामन उम्र बीत जाती है  दिल का रिश्ता बनाने में

थोडा़ सा वक्त

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 किसी ने थोड़ा सा वक़्त दिया था मुझे......!! मैने आज तक उसे इश्क़ समझ कर संभाल रखा है....!!

परवाह ही प्रेम है

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 परवाह ही प्रेम है!!👪🤘 लेकिन समझने वाला समझे तब ना..

भूल जाते हो मुझे याद करना

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 दिल के किस तहखाने में रखते हो भला तुम मेरी यादों को, जो रख कर भूल जाते हो कि तुम्हे मुझे याद भी करना है..!!

बहुत कुछ है बाकि अब भी

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 कहने को बहुत कुछ अब भी है बाकी तुमसे, पर कह नही सकती... दिल में बिखरी पडी़ हैं बहुत सी बातें तेरी अब भी, पर तुमसे सुना भी नही सकती... यहाँ-वहाँ हर जगह, हर शय में है दिखती तस्वीर तुम्हारी, पर मैं तुमसे रूबरू होने की सोच भी नही सकती... तुम बिन कितनी तन्हा मैं हो गई हूँ, चाह कर भी तुमसे हालत अपने दिल की मैं बता नही सकती.... मिलने की तुमसे, चाहत अब भी बरकरार है मेरे दिल में, पर मैं तुमसे न मिलने की कभी दुआ कर रही हूँ... तुम, तुम्हारा प्यार, अब दिवास्वपन सा लगने मुझे लगा है, और ये सपना तुम्हारा हमेंशा सपना ही बना रहे, दिल से ये आरजु करने मैं लगी हूँ..!!

तुम्हे याद करने की आदत

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 वक्त के साथ,, बहुत सी आदतों में,, सुधार आ जाती हैं..!! पर तुम्हे,, हर पल याद करने की,, आदत नही जाती है..!!!

एहसास-ए-प्यार

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 प्यार जुदा तो कर देता है.. पर जुदा करके भी कहाँ जुदा कर पाता है साथ न होकर भी... एहसास-ए-प्यार तो साथ ही होता है...!!