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फ़रवरी, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शिव के प्रेम में सती

सच्ची प्रेम में कशिश ही कुछ ऐसी है कि, महलों की रानी औघड़ बाबा शिव की प्रेयसी हो गई, छोड़ कर राजसी ठाठ, सुख के पल सारे, कैलाश पर शिव संग रहने को राजी हो गई, फूलों सी नर्म सेज न भायी सती को, खटवांगी शिव के लिए सारे सुख साधन त्याग आई, वृषभ पर सवार रहने वाले शिव को पाने के खातिर, कठोर तप तक करने को तैयार हो गई..! मलमल के वस्त्र न भाये सती को, बाघम्बर महादेव को मन में बसाने लगी, शिव के साधना अराधना में कोई कमी न छोडी़ सती ने प्रतीक्षा की हर दरिया को पार करने को तैयार हो गई..!

बसन्त बहार

ऋतुराज बसन्त ने आगमन किया है, मदमाती हवाएँ अठखेलियाँ कर लोट रही, राह में ज्यो ऋतुराज के स्वागत को, वातावरण में इत्र सा फैल गया चहूँ ओर, कुछ सर्द सी हवाएं कर रही मन को विभोर, रंग विरंगे मधुमासी तितलियाँ फूलों को, चुमकर  कर रही  हैं उनका अभिनन्दन बसन्ती भंवरे कभी इधर तो कभी उधर गुँजने लगे डाली डाली और फूल फूल, प्रेम धून की राग अलाप हर दिशा में मंडराने लगे कहीं पीले सरसो तो कहीं लाल कुसूम कहीं गुलाबी फिजाएं तो कहीं पुष्पों की रंगीन शमा हर तरफ इन्द्रधनुषी बयार चलने लगी हैं, खुशबू बिखेरती सुबह और शाम होने लगी है सूखे पडे़ पेडों में ज्यो नवजीवन का संचार सा हुआ, हरियाली ही हरियाली आँखों को सुहाने लगे हैं, कलियाँ खिलने लगी, कोंपलों से पौधे भरने लगी हैं बाग- बगीचे खुशबू में नहा कर महकने लगी है, चहूँ ओर बस बसन्त बहार है..!!

छोड़ने वाले क्या जाने..

छोड़ कर जाने वालों को क्या पता यादों का बोझ दिल पर कितना होता है है ना....?? छोड़ कर जाने वाले चले जाते हैं, उन्हे सिर्फ जाना होता है, वो ये नही जानते, जिन्हे वो छोड़ कर आए हैं उनका क्या हाल होगा, उनके बगैर.. कैसे यादों के दर्द से गुजरेंगे, कैसे इस बोझ को सहेंगे, कैसे अश्कों को सम्भालेंगे, वो कुछ नही सोंचते, उन्हे बस जाना होता है छोड़ कर, और वो चले जाते हैं..!!

भूल जाती हूं मैं

 ये बातें करनी है, वो बातें करनी है और जब बातें होती हैं मेरी तुमसे तो भूल सी जाती हूं मैं, क्या बातें करनी है

भूलक्कड़ सी हो चली हूं मैं

जब से जिन्दगी में मेरी तुम आए हो सब कुछ मैं भूलने सी लगी हूं, ख्याल अब कुछ रहता नही मुझे खुद को न जाने कहाँ रख कर, ढूंढने में लगी हुई हूं मैं..! न सुबह का ख्याल न शाम की खबर  है, न जाने क्यूं हर पल ढूंढती तुम्हे ही मेरी नजर है, बेमाने से हो गए सारे ख्यालात मेरे, बता न पाऊं किसी को ऐसे तो हैं हालात मेरे, बेसबब दिल को मेरे, तेरी जुस्तजू हर पहर होने लगी है, न जाने क्यूं खुद को मैं भूलने सी लगी हूं..!!

हंसती बहुत हूं

 यूँ तो हंसती बहुत हूँ मैं, पर मेरी हंसी को भी शायद हंसना मेरा रास नही आता,   छलका ही देती है दर्द, आँखों में मेरे कुछ यूँ रिश्ता निभाती है ये, मेरे दिल के जख्मों से, मुस्कान लवों पर आ भी नही पाता कि आँखों में नमी को सजा देती है..!!

प्रेम और देह की चाहत

 प्रेम तो तभी खत्म हो जाता है, जब प्रेम के बीच में देह की चाहत आ जाती है, क्योकि प्रेम जो सच्चा और आत्मिक होता है, उसमें देह के लालसा की तो गुंजायश ही नही रहती. जिस प्रेम में देह के लिए चाहत आ जाए वो प्रेम खोखला और मृतप्रायः हो जाता है. क्योंकि सच्चे और पवित्र प्रेम में वासना के लिए कोई स्थान नही है, प्रेम तो सींचीत होता है नेह और स्नेह से जिसमें एक दुसरे के लिए वात्सल्य होता है करूणा और ममता होता है.

सफर सुहाना हो जाता

 सफर सुहाना हो जाता जिन्दगी का गर हमसफर बन कर तुम मिले होते राह के काँटे-कंकड़ पुष्प से प्रतीत होते मुझे गर मिला मुझे हाथों में तुम्हारा हाथ होता.. गुनगुनाती हुई मैं कदम आगे बढाती जाती गर मेरे हमकदम बन तुम मेरे साथ होते आज जो चुभन सी अक्सर महसूस होती है मुझे, शायद वो तो नही होती दिल में मेरे  बोझील नजरे, बुझा सा मन, खोखली हंसी का आवरण जो होंठों पर है मेरे शायद वो नही रहता, गर तुम मुझे मिल गये होते..

सपनों के लिए

 अपने सपनों के लिए सकारात्मक कोशिश करने से कभी पीछे न हटना ही जीवन जीने का सही उद्देश्य है.. अपने सपनों को साकार करना, उनमें रंग भरना, उनमें जीना यही तो है सपनों का सही आकलण. पर ध्यान ये भी रहे कि अपने सपनों के लिए किसी का कुछ हानि न हो जाए, किसी और का कोई सपना टूट न जाए...

तुम बिन कौन मेरा प्रभू

 तुम संग प्रभू मन का मेल मैं किए बैठी हूं, तुम बिन मेरा दुसरा है और कौन. तुमसे ही सारी बाते होती है मेरे ह्दय की, यूं तो अधर मेरे रहते, हरसू ही मौन. तुम बिन कौन समझे, मेरे हृदय की पीड़. बस तुम ही जानो, क्यो है मन मेरा अधीर. तुमसा कोई और सखा न मेरा इस जग में है दूजा, प्रभू तुम ही मेरा प्रेम, आस और तुम ही मेरी पूजा. तुम बिन जाऊँ कहाँ मैं कि मेरे चारों ओर घोर अंधेरा है, कोई नजर नही आता और दूर तक, जो कठिन परिस्थिती में भी पकडे़ हाथ मेरा है. स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित

दिल तुझे हंसी नही आती

 दिल तुझे हंसी नही आती न जाने कितनी नादानियाँ की है तूने न जाने कितनी परेशानियाँ मोल ली है तूने न जाने कैसी-कैसी बातों को खुद पर लिया है तूने न जाने कैसे-कैसे लोगों पर ऐतबार किया है तूने न जाने कैसे-कैसों का आसरा बनाया खुद को तूने न जाने किन-किन बातों के लिए आँखें भिगोई है तूने सोच कर उन सब दिनों के अफशानों को, याद कर उन सब पुरानी किस्से कहानियों को  ऐ दिल! सच सच बता, तुझे हंसी नही आती है..!!?

मेरे शिव पर मुझे विश्वास है

 हर अन्धेरे को मिटाने वाले, उस डमरूवाले पर मुझे आस है  कभी मुझे न होने देगा वो निरास ये मुझे उस पर पूरा विश्वास है, वो नंदी सवार, निराकार प्रभू मेरा मेरे हर दुखों का तकलीफों का, एक ही पल में करने वाला विनाश है उस अदृश्य शक्ति पर मुझे विश्वास है पूर्ण विश्वास है...!!

प्रेम और प्रतीक्षा

 प्रेम है तो प्रतीक्षा भी है, प्रतीक्षा में ही तो प्रेम निहित है, प्रेम कभी पूर्णरुपेण अप्रतीक्षीत होता ही नही.. प्रेम में देवी - देवताओं ने भी प्रतीक्षा किया है.. प्रियतम के वियोग में, उनकी प्रतीक्षा ही प्रेम की सत्यता की मापदंड है. प्रतीक्षा की पीडा़ की अग्नि में तप कर ही प्रेम कुन्दन बना है, प्रेम की विह्वलता हो या प्रतीक्षा की विह्वलता प्रेम में संकल्पित प्राणी कभी पराजित नही होते.. सही मायने में प्रेम और प्रतीक्षा एक दुसरे के पूरक हैं एक दुसरे के बिना कोई अस्तित्व नही है इनका, प्रतीक्षा के बिना प्रेम अधूरा है तो प्रेम के बिना प्रतीक्षा अधूरी है,

बच्चे और माता-पिता

 हम सभी जानते हैं कि एक ऐसा दिन भी हमारी जिंदगी में आता है जब हमारे बच्चे तक हमारा साथ छोड़ देते हैं, इस कड़वी सच्चाई से हम सभी वाकिफ हैं, जीवन के एक मोड़ पर हमारे बच्चे हमारा साथ छोड़ देते हैं और यहां तक कि हमें बहुत बुरे दिन भी देखने पड़ते हैं . फिर भी ईश्वर के बनाए हुए एक ऐसी स्नेह की डोर है, प्रेम की धागा है जो कि हमें बांधे रखती हैं अपने बच्चों से. और सारी सच्चाई जानते हुए भी हम जो भी कुछ करते हैं अपने बच्चों की भलाई के लिए करते हैं, उनके अच्छे भविष्य के लिए करते हैं, बिल्कुल ही निस्वार्थ भावना से करते हैं, कुछ पाने की उम्मीद न होते हुए भी हम अपना सब कुछ उन पर न्योछावर करते हैं, तन मन धन से उनके लिए समर्पित होते हैं. जानती हूँ मैं सारे बच्चे एक जैसे नहीं होते, कुछ बच्चे ऐसे भी विरले होते हैं जिनके लिए माता-पिता ही सब कुछ होते हैं. पर क्या सारे माता-पिता ऐसे खुशनसीब होते हैं..??

क्यो हर लम्हा

 क्यों हर लम्हा दिल मेरा तुम्हें याद करता है, क्यों हर लम्हा  मेरी आंखें तुम्हारे लिए ही तरसती हैं, क्यो हर लम्हा मुझे तुम्हारा इंतजार रहता है, क्यों हर लम्हा मुझे ऐसा लगता है जैसे कि तुम आने वाले हो, क्यों हर लम्हा मैं तुम्हारी बातें ही सोचती रहती हूं क्यों हर लम्हा मेरी आंखों में तुम्हारे ही सपने होते हैं क्यो हर लम्हा मेरे ख्यालों में तुम ही होते हो,

जब भी गुजरते हैं

 जब भी गुजरते हैं.... हम कभी उन गलियों से... जहाँ कभी तेरा आना जाना था... बरबस ही आँखों में... अक्श तेरा..आ जाता है.. धड़कने बेचैन हो जाती है... दिल में यादों की तेरी बारीश सी हो जाती है...

हाँ मैं बदल रही हूँ

 कुछ यादें हैं तुम्हारी... जिन्हे दिल से निकालने में लगी हूं,, कुछ बातें हैं तुम्हारी... जिन्हे भूलाने में मैं लगी हूं,,, तेरी हसरत रही होगी शायद... टूटता देखे तू मेरे किरदार को,,, हां दर्द तो बहुत हुआ... दूर होकर दिल को तेरे आरजु से,,, पर तू फिकर न कर.. कि अब मैं संभल रही हूँ मुसलसल,,, हां... शायद मैं भी अब बदल रही हूं..!!

मृगतृष्णा सी चाहत मेरी

 मृगतृष्णा सी चाहत तेरी मौसम चाहे कोई भी हो  बुझ कर भी यह बुझती नहीं... और हठी चातक सी है प्यास मेरी,, समंदर की लहरों पर मैं खेल रही पर नजरें मेरी आसमान को ही तक रही ऐ बरखा तेरे दीद को नैन मेरे तरस रहे जाने कब तेरे दरस होंगे और प्यास मेरी बुझेगी..

जिन्दगी तब हुआ करती थी

 जिन्दगी तब जिन्दगी हुआ करती थी... जब इसमें शामिल तुम थे.. तुम्हारी बातें थी,, तुम्हारे एहसास थें... तुम्हारे बाद जिन्दगी.. कभी जिन्दगी न रही... जिन्दगी के नाम पर बस,, जिन्दगी का आवरण ही रह गई... और उस आवरण को,,, ओढे रखना... ताउम्र की मजबुरी ही हो गई...!!

प्रेम में क्यो हो..

 प्रेम में क्यो हो.. सारी मेरी ही जिम्मेदारी थोडी़ सी तुम भी तो निभाओ साझेदारी तुम क्यो चाहते हो कि मैं ही तुम्हे समझूँ हमेशा कभी-कभी तुम भी तो मुझे समझ लिया करो ना.. तुम क्यो चाहते हो कि मैं ही तुम्हारे लिए सोचूँ हमेशा कभी-कभी तुम भी तो मेरे लिए सोच लिया करो ना.. तुम क्यो चाहते हो कि मैं ही हर पल यादों में तुम्हारे पागल रहूँ हमेशा कभी-कभी तुम भी तो यादों में मेरी पागल हो जाया करो ना.. तुम क्यो चाहते हो हमेशा तुम ही रहो नाराज और मैं ही तुम्हे मनाऊँ कभी-कभी होने दो मुझे भी नाराज और मनाओ तुम भी मुझे.. तुम क्यो चाहते हो तुम्हारे इनतजार में मैं ही रहूं पलके बिछाये हमेशा कभी-कभी तुम भी तो मेरे इन्तजार में पलके अपनी अश्रुपुरित करो.. तुम क्यो चाहते सारी इच्छाये बस तुम्हारी ही पुरी करूँ मैं कभी-कभी मेरी इच्छओं को भी तो दो सम्मान तुम.. तुम क्यो चाहते हो हमेशा गुस्सा तुम ही करो मुझपर कभी-कभी ज्यादा न सही थोडे़ ही पर गुस्सा का अधिकार मुझे भी तो दो... तुम क्यो चाहते हो कि तुम बार बार रुठो और मैं तुम्हे मनाऊँ कभी-कभी मैं रुठूँ और तुम तो मनाओ मुझे... तुम क्यो चाहते हो प्रेम की संपूर्णता की ओर म...